Kavita Jha

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फर्क पड़ता है# लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता -16-Aug-2022

फर्क पड़ता है
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फर्क पड़ता है जब तुम मुझे 
इंसान नहीं मैनिक्विन समझते हो
सज सवर के रहने के लिए कहते हो
मेरी भावनाओं की कद्र नहीं करते हो
हाँ फर्क पड़ता है मुझे 
जब तुम्हारे मेहमान 
भी मुझे मैनिक्विन की 
तरह ही समझते हैं
सिर्फ मेरे कपड़े
मेरे पहनावे की बाते करते हैं
शायद वो भी भूल जाते हैं
पहनावा तो सिर्फ बाहरी आवरण है
इंसान की पहचान नहीं 
मन की सुंदरता का
भला पहनावे.. 
और रंग रूप से क्या लेना देना..

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कविता झा'काव्या कवि'
#लेखनी
## लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता
16.08.2022

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10 Comments

Pankaj Pandey

19-Aug-2022 09:22 AM

Very nice

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shweta soni

18-Aug-2022 12:01 PM

Behtarin rachana

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Khan

17-Aug-2022 10:43 PM

Nice

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